Yatharth Sandesh
05 Sep, 2017 (Hindi)
Story
आखिर यह भी तो नहीं रहेगा।
Sub Category: Bhakti Geet
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_*"आखिर यह भी तो नहीं रहेगा।"*_
_एक फकीर अरब में हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव में शाकिर नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। शाकिर ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार दे कर विदा किया। फकीर ने दुआ किया -"खुदा करे तू दिनों दिन बढता ही रहे।"_
_सुन कर शाकिर हंस पड़ा और कहा -"अरे फकीर! जो है यह भी नहीं रहने वाला है"। यह सुनकर फकीर चला गया ।_
_दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि शाकिर अब बगल के गांव में एक जमींदार के वहाँ नौकरी करता है। फकीर शाकिर से मिलने गया। शाकिर ने अभाव मे भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दिया।_
_दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखों में आँसू थे। फकीर कहने लगा "अल्लाह ये तूने क्या क्रिया?"_
_शाकिर पुनः हंस पड़ा और बोला -"फकीर तू क्यों दुखी हो रहा है? महापुरुषों ने कहा है - "खुदा इन्सान को जिस हाल मे रखे खुदा को धन्यावाद दे कर खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है" और सुनो यह भी नहीं रहने वाला है"।_
_फकीर सोचने लगा -"मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ सच्चा फकीर तो शाकिर तू ही है।"_
_दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जमींदार जिसके वहा शाकिर नौकरी करता था वह संतान विहीन था मरते समय अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया।_
_फकीर ने शाकिर से कहा - "अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया।_ _अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"_
_यह सुनकर शाकिर फिर हंस पड़ा और कहने लगा - "फकीर! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"।_
_फकीर ने पूछा क्या यह भी नहीं रहने वाला है? शाकिर ने उत्तर दिया "या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नहीं है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह हैं परमात्मा और इसका अंश आत्मा।" फकीर चला गया ।_
_डेढ साल बाद लौटता है तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तु कबूतर उसमें गुटरगू कर रहे हैं। शाकिर कब्रिस्तान में सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है। बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।_
_"कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।_
_रो रही है शबनमे नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।_
_जिनके महलों मे हजारो रंग के जलते थे फानूस।_
_झाड उनके कब्र पर बाकी निशा कुछ भी नहीं।"_
_फकीर सोचता है - "अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है? क्यों इतराता है? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है दुःख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।"_
_तू सोचता है - "पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज मे हूँ। लेकिन सुन न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।_
_"सच्चे इन्सान है वे जो हर हाल में खुश रहते हैं।_
_मिल गया माल तो उस माल मे खुश रहते हैं।_
_हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते है।"_
_धन्य है शाकिर तेरा सत्संग और धन्य हैं तुम्हारे सद्गुरु। मैं तो झूठा फकीर हुँ। असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है।_
_अब मैं तेरी कब्र देखना चाहता हूँ। कुछ फूल चढ़ा कर दुआ तो मांग लूँ।_
_*फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है- आखिर यह भी तो नहीं रहेगा।*_
_एक फकीर अरब में हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव में शाकिर नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। शाकिर ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार दे कर विदा किया। फकीर ने दुआ किया -"खुदा करे तू दिनों दिन बढता ही रहे।"_
_सुन कर शाकिर हंस पड़ा और कहा -"अरे फकीर! जो है यह भी नहीं रहने वाला है"। यह सुनकर फकीर चला गया ।_
_दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि शाकिर अब बगल के गांव में एक जमींदार के वहाँ नौकरी करता है। फकीर शाकिर से मिलने गया। शाकिर ने अभाव मे भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दिया।_
_दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखों में आँसू थे। फकीर कहने लगा "अल्लाह ये तूने क्या क्रिया?"_
_शाकिर पुनः हंस पड़ा और बोला -"फकीर तू क्यों दुखी हो रहा है? महापुरुषों ने कहा है - "खुदा इन्सान को जिस हाल मे रखे खुदा को धन्यावाद दे कर खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है" और सुनो यह भी नहीं रहने वाला है"।_
_फकीर सोचने लगा -"मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ सच्चा फकीर तो शाकिर तू ही है।"_
_दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जमींदार जिसके वहा शाकिर नौकरी करता था वह संतान विहीन था मरते समय अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया।_
_फकीर ने शाकिर से कहा - "अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया।_ _अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"_
_यह सुनकर शाकिर फिर हंस पड़ा और कहने लगा - "फकीर! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"।_
_फकीर ने पूछा क्या यह भी नहीं रहने वाला है? शाकिर ने उत्तर दिया "या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नहीं है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह हैं परमात्मा और इसका अंश आत्मा।" फकीर चला गया ।_
_डेढ साल बाद लौटता है तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तु कबूतर उसमें गुटरगू कर रहे हैं। शाकिर कब्रिस्तान में सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है। बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।_
_"कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।_
_रो रही है शबनमे नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।_
_जिनके महलों मे हजारो रंग के जलते थे फानूस।_
_झाड उनके कब्र पर बाकी निशा कुछ भी नहीं।"_
_फकीर सोचता है - "अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है? क्यों इतराता है? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है दुःख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।"_
_तू सोचता है - "पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज मे हूँ। लेकिन सुन न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।_
_"सच्चे इन्सान है वे जो हर हाल में खुश रहते हैं।_
_मिल गया माल तो उस माल मे खुश रहते हैं।_
_हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते है।"_
_धन्य है शाकिर तेरा सत्संग और धन्य हैं तुम्हारे सद्गुरु। मैं तो झूठा फकीर हुँ। असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है।_
_अब मैं तेरी कब्र देखना चाहता हूँ। कुछ फूल चढ़ा कर दुआ तो मांग लूँ।_
_*फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है- आखिर यह भी तो नहीं रहेगा।*_
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